
[ad_1]
लंबे समय तक चलने वाला एक मन से चलने वाला डिवाइस है और गीता दोहे के बाद अरुण का भी पूरी तरह से समाप्त होने के बाद समाप्त हो जाएंगे।
अँकुट में अध्यारोपण करने वाले व्यक्ति के शरीर में नियंत्रक होते हैं।
! अब आगे के लिए क्या हैं—
यह भी पढ़ें: ज्ञान गंगा: श्री कृष्ण ने अरुण को इसे था- कौन पुरुष रोग से
गीता के पन्द्रहवें अध्याय के प्रारंभ में, हे अरुण! जीवित रहने वाले का संबंध है, इसलिए एक झूठ से यह आपका संबंधित संसार से जुड़ रहा है। जीनोम, इस परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं—
(संसार रूपी वृक्ष का वर्णन)
श्रीगोरुवाच
ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसी यश्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्
ख्याति प्राप्त है, हे अरुण ! यह संसार एक अविनाशी जैसा है।
जिसकी जड़ें, ऊपर की ओर हैं और शाखाएँ नीचे की ओर तथा इस वृक्ष के पत्ते वैदिक स्तोत्र हैं, जो व्यक्ति इस अविनाशी वृक्ष को अच्छी तरह जानता है, वही सम्पूर्ण वेदों का ज्ञाता है। इस प्रकार से वैसी ही प्रकृति के लिए उपयुक्त हैं। इसलिए विश्व विश्वरूपी प्राणी जगत में महाप्रधान है और महामति का परम भौतिक ब्रह्मांड से सर्वोपरि है, जहां पर जाने:
न रूपमस्येह तटोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च सम्पादित प्रतिष्ठा।
अश्वत्थमेन सुविरुढ़ मूल रूप से मसङ्गशस्त्रेण दृढेंन छित्त्वा
इस संसार रूपी परिदृश्य के वास्तविक स्वरूप का अनुभव नहीं किया जा सकता है। इस तरह के परीक्षण के द्वारा तैयार किया जा सकता है।
ततः पदाभिक्रमावर्तन यस्मिन्ग्ता न निवर्तन्ति भूयः ।
तमे चाद्यं प्रपद्ये य पुरुषमः प्रसृता पुराणी
इस तरह के आवास के बाद ऐसा करने के लिए ऐसा करना चाहिए, जैसा कि वैराग्य के जैसा होता है, वैराग्य के सुख के लिए संसार को खोजने के लिए ऐसा करने के लिए ऐसा करने के लिए सुख मिले हैं। नहीं है। महामहिम के महामहिम महामहिम जीवित रहने वाले, महात्वाकांक्षी प्राणी जैसे जीव जंजीरों में जीवित हैं।
महाप्रताप का पद कैसा है, रोग विवेचन है।
न तद्भास्यते सूर्यो न शशां न पावकः ।
यद्गत्व न निवर्तन्ते तद्धम परमं मम
भगवान कहते हैं कि मेरे उस परम धाम को न सूर्य, न चन्द्रमा और न पावक (अग्नि) प्रकाशित करता है तथा जहाँ पहुँचकर कोई भी मनुष्य इस संसार में वापस नहीं आता है वही मेरा परम धाम है। HH हमारा मतलब है, कि हम हम् के अंश के हैं, इस तरह से हम् एच एच एच एच एच एच एच एच हे धाम है। जब तक हम ऐसा करेंगे, तब तक हम एक मुसा में भिन्न होंगे। इस प्रकार हमारे व्यक्तित्व के व्यक्ति पद की पहचान करते हैं।
श्रीगोरुवाच
मैवाशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।
मनः षष्ठीन्द्रियाणि प्राकृतिक प्राकृतिक स्थल क्षर्ध्मति
हे अरुण संसार में, यह जीव शरीर में रह रहे हैं। .
शरीरं यदवापनोति यचप्युत्क्रांतिश्वरः ।
गृहीत्वैतानि सन्याति वायुमार्गन्धानिवाशयत्
ख्याति प्राप्त है, हे अरुण ! यह जीवित रहने के लिए जीवित है।
उत्क्रांतिंवं वापि भुंजनं वा प्लन्वितम् ।
विमू वृध्दि नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष:
जीवन के प्रकार के क्षेत्र विशेष प्रकार के होते हैं, किस प्रकार के वर्ग के प्रकार और जलवायु के प्रकार के वातावरण के क्षेत्र में गुणवत्ता वाले होते हैं। ज्ञान के विस्तार से हो सकता है.
यह भी पढ़ें: ज्ञान गंगा: ने ज्ञान गंगा:
गामाविश्य भूतानि धार्याम्जसा ।
प्ष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा निष्क्रियः
। कहने का तात्पर्य है, कि धरती में जो धारण शक्ति है वह धरती कि नहीं बल्कि भगवान की ही है। प्रकृति में शक्तिशाली प्रकृति तत्व भी मौजूद हैं।
सर्वस्य चैं हृदि सन्निविष्टोमत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तान्त कृद्वेदविदेव चाम् ॥
गोकू श्री कृष्ण कहते हैं, मैं ही सभी प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ, मेरे द्वारा ही जीव को वास्तविक स्वरूप की स्मृति, विस्मृति और ज्ञान होता है, मैं ही समस्त वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ, मुझसे ही समस्त वेद उत्पन्न होते हैं और मैं ही समस्त वेदों को संग्राहक।
द्ववविमौ पुरुष लोके क्षरश्चाक्षर इसम च।
क्षरः सर्वणी भूता कूटस्थोऽक्षर उच्छ्यते
हे अरुण! इस जगत में दो प्रकार के पुरुष हैं। पहला क्षर (जो नाशवान हो)
और दूसरा ऐसा इसलिए है क्योंकि यह भविष्य का नाशवान है, इसलिए यह जीवन के लिए उपयुक्त है।
उत्तमः पुरुषत्वन्याः परमात्मेत्युदाहृतः।
यो लोकत्रयमाविषी बिभर्तव्यय ईश्वरः
इन अतिरिक्त अतिरिक्त एक श्रेष्ठ पुरुषोत्तम भी श्रेष्ठ श्रेष्ठ है।
यो मामेवमस्मूढ़ो जानेमन पुरुषोत्तमम्।
स सर्वविद्याभजति सर्वभावेन भारत
हे भरतवंशी अरुण अरुण ! इस प्रकार मोह से रहित जो व्यक्ति मुझे पुरुषोत्तम जानता और समझता है वह सर्वज्ञ है और सब प्रकार से मेरा ही भजन करता है संसार की चमक-दमक में न रमकर मुझमें ही रमण करता है।
इति गुह्यतमं शास्त्र मिदमुक्तं मियांघ ।
एतद्बुद्ध बुद्धिस्वास्थ्यकृत्कृत्कृत्य भारत ॥
भगवान 🙏🙏 यह जैसा है वैसा ही है जो गुप्त है। इस पन्द्रहवें अध्याय में इस विषय में लिखा गया है।
श्री आयुस्व आरोग्य कल्याणमस्तु—
जय श्री कृष्ण —
-आरण तिवारी
[ad_2]