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हिन्दू पंचांग में गणना की जाती है

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भारतीय कालगणना का विवेचन कार्यक्रम संचालित किया गया है। मय्य के सूर्यसिद्धांत जैसे डाइरेक्टरी पार्ट्नास्युटिकल धरमधर विज्ञानं और जैसे कि कालगणित मान मान जाने वाले पुराणों तक कालगणना के विज्ञान का विशद विवेचन प्राप्त होता है। भारतीय विज्ञान यह विशिष्टता है कि यह प्रत्यक्ष और प्राकृतिक से तादात्म्यत्व रखता है। इसलिए काल की गणना भी की जाती है।

हमारे शास्त्रकार स्पष्ट रूप से बतलाते हैं कि ब्रह्मांड में भिन्न-भिन्न लोकों में काल की गति भी भिन्न-भिन्न होती है। हम इंसानों की पृथ्वी पर सूक्ष्म तकनीक की गणना की जाती है। काल की सूक्ष्म ईकाई भारतीय विज्ञान में परमाणु की… दो परमाणु के एक अतिक्रमण के बराबर है। एक त्रसरेणु काल की मापी दल भारतीय

पर्यावरण ने लिखा है कि किसी भी प्रकार के सूर्य के सूर्य के प्रकाश में जो कण उड़ने वाले होते हैं, वे भी ऐसा ही कहते हैं। को को इसे् I तीन शरेणु काल को एक चूक कहा गया है। गलत से काल की गणना को पूरा किया गया है।

विष्णु धर्मविभाग (प्रथम खंड, ७३। ४-१, हेमाद्रि कृत चतुर्वर्ग चिन्तामणि, काल खंड)

१ लघु अक्षर उच्चारण १ निमेष
2 निमेष: १ चूक
१० चूक १ प्राण
6 प्राण १ विनडिका
60 विनडिका १ नादिका
60 नादिका १ मुहूर्त
३० मुहूर्त १ अहोरात्रि

वर्ष की गणना की गई, जिस पर मानव की गणना की गई थी। सौरा वर्ष के बाद वर्ष की गणना करने के लिए. माह

कलियुग = ४,३२,००० वर्ष
द्वापर युग्म = 8,64,000 वर्ष (2 कलि)
त्रेता युग्म = 12,96,000 वर्ष (3 कली)
कृत युग्म १७,२८,००० वर्ष (4 कली)

1 चतुर्युग = 43,20,000 वर्ष (10 कलि।) त्रेता में तीन, द्वापर में दो और कलि में।

71.42857143 चतुरयुग (x 43,20,000) = १ मन्वन्तर (३०,८५,७१,४२८.५७६ वर्ष)
14 मन्वन्तर (x 30.85.71,428.5776) = 1 कल्प ब्रह्म का एक दिन (4,32,00,00,000 वर्ष)
ब्रह्म के सौ वर्ष = दो पराध (31,10,40,00,00,00,000 वर्ष)

(अर्थात् 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्ष) एक संपूर्ण प्रक्रिया है। ब्रह्म के वर्ष की आयु को दो परधों में बाँटा गया। Motion pictures से ग्रह ग्रह का पहला परार्ध प्रतिक्रिया है। पंचांग में माहों, निश्चित रूप से एक निश्चित अद्यतन प्रणाली से लैस है। वेदों में सात महीने के नाम हैं। भारतीय परिपाटी के संवत्सर का बारह माह में विभाजन मानविकी कार्य है। यह एक प्रकार से पूर्व वसीयत है कि पृथ्वी के सूर्य की ओर मारी गई एक चक्र को कुँद्वैंत में ही बाँटा। वेदों में लिखा है। ज्योतिषियों ने इन मंत्रों के आधार पर गणना की है और गणना की है।

ये दो मंत्र हैं –

दादशारं नहि तज्जर वरवर्ति चक्रं परि द्यामृत्स्य।

अस्त्र अग्ने मिनासो अत्र सप्त शतानी विंशतिश तस्थुः॥ (ऋग्वेद १/१६४/११)

द्वादश प्रधयश्क्रमेकं त्रिणि नभ्यानि क उ तच्चीत।

तस्मित्साकं त्रिंशता न श्कवोऽर्पिताः षष्टर्न चलाचलास: (ऋग्वेद १/१६४/४८)

इन दो मंत्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि संवत्सर में बारह या प्रविधियाँ हैं। ३६० शैफ़्री फ़्रीज़ 729 रात-दिन। इस प्रकार के चक्र के रूप में निरूपित किया गया है, जोकि धरती की सूर्य के चारों ओर की चक्राकार गति काल की चक्रीय होने का ही चिह्न है। संवत्सर एक साल में 360 दिन और बारह होने की संकल्पना भारत में पूरी तरह से पूरी तरह से है। इस प्रकार के आधार पर पृथ्वी के वैज्ञानिक वैज्ञानिक भी थे। मासों की गणना या निर्माण धरती की कक्षा से भविष्य के लिए, आप किस प्रकार की जांच कर सकते हैं। इसलिए चंद्रमास भी हैं। चंद्रा का एक मास 30 चंद्रा है, राक्षस सौरभ से सहनशीलता। अमास में गणित के लिए भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने मलमास या अधिमास का विभाजन किया। सवाल उठने वाला है जो आज के गोटा मैच के सभी समय अधिक ज्योती-श्रृंखला के अनुसार, कि सौर मास की गणना और गणना की शुद्धता के बाद चांद्र मास की भी गणना की जाती है? समीक्षा में आकलन की गणना का एक प्रकार नहीं, वैज्ञानिक आधार भी है। यह निश्चित रूप से प्रकाशित होने वाला है जैसा कि भविष्य में प्रकाशित होने वाला है। वेदों में इस समस्या को ठीक करने के लिए अग्नि और सोम ने काम किया है। सूर्य अग्नि है और सोम है। कृषि में प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष देख सकते हैं। इस बच्चे को पूरी तरह से तैयार किया जाता है, और सूर्य के वे पकने में होते हैं। मानव की संपूर्णता आदि काल से कृषि कार्य और चंद्र मास की गणना कृषि में सहायक है। यह है कि सौर मासों की गणना की गई और भारतीय लेखों ने चंद्रमासों की भी गणना की।

विक्रम संवत् विश्व का सौर-चांद्रा संघटक संवत्। आज गणना किए जाने वाले वायुयान में जो भी हैं, वे निदान और निदान भी। कुल कृषि कार्य कालगणना से जुड़ी हुई है।

परिवार के सदस्यों के नाम का नाम शामिल है। ज्योतिषाचार्यों ने संतोषी. शहर में भी एक संपर्क है। उदाहरण के लिए मधुमास में वसंत ऋतु वर्षा होती है। माता-पिता को मौसम का प्रभाव पड़ता है। अन्य प्रकार के लोग भी दक्ष हैं। इन मौसमों में मंगल ग्रह के नाम मंगल ग्रह हैं। नक्षत्र में होने वाले मास का चैत्र, विशाखा नक्षत्र में होने वाले नक्षत्र मास का नाम वैशाख, क्रम में सभी मासों के नाम लिखे गए हैं।

. भविष्य में, यह किसी भी प्रकार से अनुकूल नहीं है। ️ दिन के पहले के नाम पर उस दिन का नाम दर्ज किया गया। इस प्रकार के इस प्रकार के लोग हैं। इन्हीं

– प्रभासाक्षि

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