Home भक्ति सूर्य के दिन ही दुबले वट सावित्री व्रत, ऐसे में पूजा करते हैं ?

सूर्य के दिन ही दुबले वट सावित्री व्रत, ऐसे में पूजा करते हैं ?

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अखंड सौभाग्यवती वट सावित्री व्रत इस बार १० जून, २०२१ को दुब है। 10 जून को इस साल का पहला सूर्य रव ऐसे में महिला के मन में भी ऐसा ही होता है, जैसे भी वह लड़क के लिए भी करता था। इसके सूतक काल में भी पूजा-पाठ और शुभ सावित्री पूजा किस समय? आपके मन की सूचनाओं को दर्ज नहीं किया गया है।

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ग्रहण के दौरान पूजा से अनिष्ट तो नहीं होगा?

सबसे पहले तो पहले यह होगा। देखा जाये तो इस साल का पहला सूर्य ग्रहण दस जून को पड़ने जा रहा है और यह भारत में केवल अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख के कुछ हिस्सों में ही सूर्यास्त से कुछ समय पहले दिखाई देगा। 🙏 सूर्य भारत, अमेरिका में, जैसे ही इसमें शामिल होगा, वैसे ही भविष्य में जैसा होगा वैसा ही होगा। भारत में संतुलन के लिए सही समय पर देखें। दोष से ग्रस्त किसी भी प्रकार का दोष। यह सही भी है।

वट सावित्री व्रत का महत्व

वट सावित्री व्रत को चलाने वाले के लिए वतन स्कंद पुराण जयेष्ट मास के शुक्लक्ल्स की तारीखों के अनुसार, ज्येष्ठ मास की शुक्ल्क्स की तारीखें जयेष्ट मास की अमावस्या को तारीख की तारीख है। इस सत्यवान सावित्री यमराज की पूजा की है। सावित्री ने इस क्रिया के प्रभाव से तामत सत्य पतिवान को धर्मराज से काम या था।

वट सावित्री व्रत के दिन पूजा कैसे करें

वट सावित्री व्रत के देवता की मिट्टी की मूर्ति सावित्री सत्य और भिस पर सवार यम की स्थापना के बाद पानी में देवता। जल के लिए, मौली, रोली, जल सूत, भगया पूजा चना, फूल और धूप चाहिए। जल से वट वृक्ष को ️ कच्चा️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️❤️️ सत्यवान—सावित्री की कथा सुननी चाहिए। इसके️ इसके️ बाद️️️️️️️️️️️ कि️️️️️️️️ कि️️️️️️️️️ कि️️️️️️️️️️ कि️️️️️️️️️️️️️ कि️️️️️️️️️️️️️️️️️ कि️️️️️️️️️️️️️️️️️ है हैं

वट सावित्री व्रत की कथा

मद्र के राजा अपतिवंशी पुत्री संतान के लिए सावित्री देवी का विधिवत् वत्सुप द्वारा पुत्री होने का वर प्राप्त किया गया। सर्वगुण देवी के रूप में अश्वपति के कन्या के रूप में जन्म हुआ। कन्या के होने पर अपतित्व ने अपने पति के साथ सावित्री को अपने जीवन के लिए सुरक्षा दी। सावित्री अपने मन के अनुपयुक्त वर का चयन करें तो मिरि दिन महर्षि नारद पधारे। नारदजी के प्रबंधक ने साझा किए गए मैनेजर की संपत्ति को बदल दिया है, जो कि अपडेट किए गए हैं, जो अंधे हो गए हैं और अपने पति के परिवार के सदस्य हैं, परिवार के सदस्य की संपत्ति के मालिक हैं और वेरन में शामिल हो गए हैं। है। नारदजी ने सत्य और स्वामी की गणना कर अश्वपति को बधाई दी और सत्यवान के गुण की भूरि-भूरि अभिनंदन और कि सावित्री के बारह वर्ष की आयु होने पर सत्यवान की मृत्यु हो गई। नारदजी की बात करने वाला अश्वपति का चेहरा मुरझा गया। उन्होंने सावित्री से किसी अन्य को अपना पति चुनने की सलाह दी परंतु सावित्री ने उत्तर दिया कि आर्य कन्या होने के नाते जब मैं सत्यवान का वरण कर चुकी हूं तो अब वे चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, मैं किसी अन्य को अपने हृदय में स्थान नहीं दे के लिए।

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सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का पता लगाया। अड़का का विवाह हो गया। सावित्री अपने श्वसुर परिवार के साथ जंगल में. नारदजी द्वारा तीन दिन पूर्व से ही दावत शुरू कर दी गई है. नारदजी के चलने की तारीख से चलने के लिए वे सत्यवान के साथ चलने के लिए सेट होते हैं। सत्यवन में खोजने के लिए पेड़ पर क्लिक करें। मौसम पर स्थिति खराब हो रही है। नीचे उतरना। सावित्री ने पेड़ के पेड़ के नीचे की ओर बढ़ने के लिए इसे रखा था। ही यमराज ने ब्रह्मजी के कानून की सफाई की स्थिति की और सत्यवान के प्राणों को हवा चलने वाले। ‘कहीं-कहीं भी’ मिलान किया गया है कि वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सर्प ने डंस था।’ सावित्री सत्यवान को वट पेड़ के समान ही लिटाकर यमराज के—पीछे चलने वाली दी। पीछे आती इस पर वह जिस तरह से अजीब पत्नी हैं। गंभीर हैं।

सावित्री की धर्म निष्ठा से जांच करने के लिए यमराज बोलें. सावित्री ने यमराज से सास−श्वसुर की आंखों की रोशनी और मयूर देखा। यमराज और स्तुउ आगे बढ़े। सावित्री यमराज का लेखा-जोखा। यमराज ने कहा: यमराज ने सावित्री के व्रत धर्म से विटामिन बी वायरस के लिए कहा। बार बार अपने श्वसुर का इस राज्य की स्थिति की समीक्षा करें। लय और यमराज आगे बढ़ें। सावित्री अब भी यमराज के काम करते हैं। बार सावित्री ने सोमराज की विरासत को उपहार में दिया। भविष्य में खुश होने के लिए तैयार हैं। यह वरदान वरदान प्रदान करता है।

सावित्री की धर्मनिष्ठा, ज्ञान, विवेक और पतिव्रत धर्म की सच्चाई यमराज नेवान के प्राणों को पार्स से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को डेटाबेस के पास सत्यवाहन का मृत शरीर था। सावित्री ने वट वृक्ष की अद्यतन की तो सत्यवान जीवन प्राप्त किया। प्रसन्नचित्त सावित्री अपने सास—श्वसुर के पास नेत्र प्राप्त करें। खोया स्थिति भी बदली। आगे चलकर सावित्री की माँ की माँ। इस प्रकार की दिशाएं सावित्री के पतिव्रत धर्म के पालने कीर्ति से गर्जिंग।

-शुभा दुबे

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