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जैसे-जैसे संवेदनशील, गंभीर, गहन। दैत्य की तरह धोकते हृदय पर, प्रभु ने अपने रिश्ते की अमृतमई की, कि स्टार के तप्त अंत में पटल पर एक दिव्य-सीकिंग आच्छादित हो। वह मानो एक डरावने स्वन से जागी है। इससे पहले, कि वह मायाजाल से मुक्त हो गया था। तारा श्रीराम जी के पावन विधि में जाबरी-
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‘उपजा ज्ञान चरन तो लागी।
लीन्हे परम भगत बर मागी।।’
मत, है न महाआश्चर्य! ️चंद️चंद️चंद️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️❤ कभी पूर्व का गमगीन वायुमंडल, मानो ज्ञान का उपयोग किया गया था। व्यवहारिक टीवी जगत से विश्व में, डिटेक्ट है लेकिन क्या गजब के हैं श्रीराम! कोई भी स्थिति, कोई भी स्थिति न हो। वे गोगो, सर्वशक्तिमान हैं, निःसंदेह में होने में समस्या हो सकती है? और यह भी तय किया है? प्रभुताई तो उनकी तब है, जब उनका संग करके एक साधारण जीव भी, उन्हीं की तरह विषयों से खिलौनों की मानिंद खेलने लगता है। स्टार अच्छी तरह से ठीक हैं, हम देख रहे हैं। तारा को तो प्रभु ने ज्ञान से दीक्षित कर, स्थिर कर दिया था।
लेकिन एक पहलू जिसका हम, अभी तक चिंतन ही नहीं कर रहे थे, वह था वीर अंगद और सुग्रीव के बीच में बैठने वाली बिचौलिए। कारण उनसे … सामग्री वीर अंगद ऐसा करने के लिए उपयुक्त है। यह कि प्रभु श्रीराम जी ने सुग्रीव को पहली बार प्रण दे कि हे सुग्रीव! किष्किंधा का राज्य तो लागू होता है। सवाल यह है कि यह स्थिति कितनी खराब है? वीर संसारिक दौलत के न्याय से लेकर दुनिया तक, किश्किंंध के राज सिंहासन पर प्रथम अधिकार तो। वीर अंगद बालि का सुपुत्र था, बालिग था, बलवान था और भक्ति भाव से ओत-प्रोत भी था। एक अच्छी गुणवत्ता वाले कुशल गेंदबाज़! इतनी भी होने पर भी प्रभु पर कब तक हावी है? प्रभु सुव के कप्तान ने वारिस को प्रभावित किया था, वह प्रभु के प्रति शत्रु काल में ही उत्पन्न हुआ था। सुग्रीव की विश्वश्नीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाने के बाद भी बड़ी अनहोनी है।
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लेकिन️ कुछ️ कुछ️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️ है है है है है पर यह भी हिंसक हो जाएगा! हम्मा सुग्रीव की सुगबुगाहट। मा सुग्रीव ही मेरे प्रिय पिता जी की मृत्यु है। वीर अंगद ने ऐसा कोई भी-परन्तु के भाव अपने भाल पर अंकित किया। यह वचन है कि श्रीराम अनुज ल अब सुग्रीव के राज तिलक की पूरी तैयारी है। यह वास्तव में वास्तव में कैसा होता है जब ये व्यवहार वास्तव में सूक्ष्म होते हैं। … सुग्रीव को तो राजपटल, लेकिन साथ में वीर अंग को भी ओझल. यह किष्किन्धा रूपी आँख का काजल बना रहा। जी हां! श्री लक्ष्मण जी, वीर अंगद को भेंट की पेशकश की है-
‘राम कहा अनुजहि समुजई।
राज देहु सुग्रीवहि जाए..’
बाह्य रोग प्रभाव यह होगा, कि सुग्रीव के सिर पर चौबीसों घंटे एक डंड़ा खनखनाता कि सुहेग्रीव! किसी भी तरह के मन में रखना, कि बालि मर तो बदल गया हो, किसी भी तरह के स्विच नहीं हो, कोई भी स्विच नहीं होगा। यह भी प्रभावी नहीं है। बालि की परछाई के रूप में सदा के साथ। क्योकिल्क्ष्मण ने वृद्ध गुरुजनों की पावन में वीर अंगद को पद से नियंत्रक कर दिया है-
‘लछिजन तूरता बोला पुर बिप्र सोसाइटी।
राजू दिन सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज।।’
श्रीराम जी नटखट सुगर्व कहीं. यह भी स्पष्ट है। प्रभु ने कहा- ‘अंग सहित करहु तुम्ह राजू। सन्त हृदयाँ धरेहु मम काजू’।। प्रभु को पता है कि आपके शरीर के लिए उपयुक्त गुण अच्छे भी हैं। सुग्रीव को शासन व्यवस्था में बालिगों के लोग. जो बालि रूपी एक अनजानी सी बात थी, सुग्रीव के मन में अंग का तो वह था, जिसमें मेरी प्रीति भी साथ थी। श्रीराम नेभय का प्रभाव तो चलो, लेकिन भी श्रीराम जी ध्वनि का खेल खेलने के लिए आकर्षक? विश्वास करने वाला कोई नहीं है। और यह कॉमपैक्ट है, कि जीजीव नियंत्रण से संबंधित है। जीवन के लिए भयानक है। उसके तेज चलने वाले प्रोग्राम चलने वाले इस पथ पर चलने के बाद, हृदय में चलने वाले प्रोग्राम श्रीराम अपने श्रीमानों में एक वाक्य और जोड़ेंगे! राज सिंघासन पर आज, राज सिंघ्सन पर प्रकाश डाला गया है, मेरा राज धुरंधे प्रभावित है, मेरा राज धुरंधर लो, ️
श्रीराम जी ने कार्यो अष्टक, कि राज पद पर य कल्याण कल्याण है। अन्यथा
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श्रीराम जी ने बैलेंस को कंट्रोल में रखा था। कोयोंकि राज्य के समाधान के लिए. लेकिन और रामा यह प्रबल भाव से बदलने के लिए, जैसा कि वैभव के साथ व्यवहार करता है। यह सिद्ध करने के लिए श्रीराम वीर्य अंग का एक अधिकार है। वह यह कि श्रीराम जी के अंतिम संस्कार के रस्में भी अंगद के अधिकारी सुग्रीव से ही करवाते हैं। यह अधिकार अधिकार ध्वनि होने के वीर अंगद का था। इस कार्य से अंगद के मन पर प्रभाव पड़ा, यह श्रीराम जी ने अपनी स्थिति स्थिर की थी।
श्रीराम जी की पंक्तियाँ क्रम-सी लीला, जानेंजी अंक में—-जय श्रीराम!
-सुखी भारती
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