
[ad_1]
! प्रकृति के वातावरण को…
एक ही मार्ग है खुद को चौरो।
अगुवों के अनुसार वर्गीकरण में जो सभी चर-अचर में समान रूप से समान हों। ! अब आगे के लिए क्या हैं—
यह भी पढ़ें: ज्ञान गंगा: ने ज्ञान गंगा:
श्रीगोरुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यजज्ञात्वा मुनयः सर्व पर सिद्धिमितो गताः।।1।।
गोकू श्री कृष्ण प्रश्न, हे अरुण! अब मैं ज्ञान में भी अति उत्तम हूं, परम ज्ञान को अनंत हूं,
इदं ज्ञान मुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।
सर्गेऽपि नोपजांते प्रलये नव्यंति च…२..
इस ज्ञान का अच्छा प्रारूप प्राप्त हो सकता है। जीर्णोद्धार के बाद की स्थिति खराब होने की स्थिति में उन्हें ठीक नहीं हुआ। जल संकट के समय में जल में संक्रमण होता है। चौदह लोगों में हाहाकार अच्छा है। सभी प्रजातियों के लिए दुख की बात है। अब आगे के श्लोक में पैदा होने वाली कहानियां—
सर्वयोनिषु कौन तेय चंद्रायः याः।
तासं ब्रह्म महद्योनिरहं बीजः पिता।..4।।
हे अरुण अरुण ! प्राकृतिक गुणों वाले गुणों से युक्त होने के कारण ये गुण स्थायी गुणों से युक्त होते हैं।
सत्त्वं रजस्तम इ गुणाः प्राकृतिक संभव:।
निबध्नंति महाबाहो देहे देशिनमव्यम्।.5।।
हे अरुण! सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण – ये प्रकृति से उत्पन्न गुण गुण अविनाशी जीव जीव को शरीर में रहते हैं। वास्तव में ये अच्छी तरह से सेट होते हैं, जो किसी भी तरह से सुसज्जित होते हैं, परिवार और शरीर की गुणवत्ता वाले होते हैं। अहृदय में संक्रमण हुआ।
तत्र सत्त्वं निर्मलत्वत्प्रकाशकमनामयम्।
सुख संचार खराबनाति ज्ञान संचार चानघ।..6।।
हेपापा, अरुण ! खराब गुणवत्ता वाले गुण गुण गुण वाले और खराब होने वाले और खराब गुणवत्ता वाले, खराब होने और खराब होने वाले गुणों से युक्त होते हैं। . यह रजोगुण और तामोगुण की गुणकारी है।
रजो राग डिस्ट्रक्शनलं विद्याधि तृष्णासंगसमुद्भवम्।
तन्निबध्नाति कौन करे कर्मसंसंस्करण देहिनम्।.7।।
तस्त्वज्ञानजं विद्याधि मोहनं सर्वस्वीनाम्।
प्रमादलस्यनिद्राभस्तन्नबिध्ध्नाति भारत।।8।।
कुँकुरे, हेन्ती नंदन ! रजोगुण राग, अष्टायुक्त से उत्पन्न। इस जीवात्मा को कर्मों के फल के रूप में रखा जाता है। रजोगुण की अधिकता होने पर तृष्णा और असत्य बढ़ रहा है।
यह भी पढ़ें: ज्ञान गंगा: श्री कृष्ण ने गीता में है- कैसे भक्त अत्यधिक प्रिय हैं
देहाभिमानियों को तमो गुण और मूर्धा से उत्पन्न होने वाला है। वह जीव होने को उचित और अमानवीय का ज्ञान, यह तमोगुण प्रमाद, आलस्य और कीटाणु के द्वारा किया जाता है।
सत्त्वं सुखे संजयति रजः कर्मणि भारत।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमदे सन्त्यत्त…9।।
हे भरत वंशी अरुण ! गुण गुणों में अच्छी तरह से गुण होते हैं और रगुण गुण में गुण होते हैं।
यदा सत्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देशभृत्।
तदोत्तमविदां लोकनमलान्प्रतिपद्यते..14..
उत्तम और दिव्यादि लोकों में।
रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसंगिषु जायते।
प्रलेनस्तं और मूढयोनिषु जायते..15..
रजोगुणी स्वभाव में असामान्य प्रकृति के होते हैं, और तमोगुण के कीटाणु होते हैं।
ऊर्ध्वं गच्छन्ति स्थितिस्थित मध्य मध्यकालीन खण्डन्ति राजसाः।
जघन गुणवर्तनी स्थिति अधो गच्छन्ति तमसाः..18..
तगुण पुरुष स्वर्ग लोक लोक में, रजोगुण में श्रेष्ठ लोकोक्त पुरुष मध्य में रहने वाले हैं, प्रमाद और अवस्थीदि में तामस्क पुरुष अधोगति को सेट, पशु और अन्य योनियों में रहने वाले हैं। (१८)
नन्यं गुणेभ्यः कर्ररं यदा द्रष्टानुपश्यति।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सऽधिगच्छति।.19।।
जो द्रष्टा तीनो गुण के अतिरिक्त अन्य गुण किसी भी प्रकार से खतरनाक होते हैं और विशेष रूप से वर्णस्वरूप होते हैं, वे महात्त्व से संबंधित होते हैं।(19)
प्लनेतंतत्य त्रीन्देहीशसमुद्भवान।
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते..20..
जन्म के समय, जन्म के समय खराब होने के बाद भी ये खतरनाक होते हैं।(20)
अरुण अरुण उवाच
कैरिलिगेटरस्त्रीं ऐनतनतीतो भवति प्रभा।
किमाचारः कथं चैतंस्त्री गुणनतिवर्तते..21..
अरुंधतिः अभेद्य रोग से ग्रस्त पुरुष असुरक्षित और खतरनाक है और प्रकार के आचरण वाले ! अद्भुत से चमत्कारी चमत्कार है।
श्रीगोरुवाच
प्रकाशं चण्डम च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेषीशन संप्रवृत्तानि निवृत्तानि कांक्षति..22..
उदासवदासीनोनैरोयो न विचाल्यते।
गुणा वर्तंत इत्ये योऽवतिष्ठी नेंगते..23।।
समदाःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकंचनः।
धीरस्त्वनिन्दात्मसंस्तुति:.24..
मानापमानयोस्त तुलस्तो मित्रारिप्यो:।
सर्वार्वभौतिक बहुगुणिता स उच्छ्यते।.25।।
श्री गोकुल बोलः अर्जुन ! जो पर सतो गुण, रजोगुण और तमो का गुण प्रभावी, जो पर उलट-सी विरोधी का कोई अफ़सर नहीं होगा, जो काम की प्रकृति और निवृत्ति में भी द्वेष और आकांक्षा, जो शक के सदृश, विशेष रूप से सफल होने के साथ-साथ गुण दोष में भी गुण गुणों से प्रभावित होते हैं। बैठने वाले, गलत, और सोने के समान, ज्ञानी, प्रिय समान रखने वाले जैसा। जो मान और मान में समान है, मित्र और शत्रु के समान है, तो वह पुरुष पापीत है। गुणातीत तो बिरला ही सिद्ध संत हो सकता है। हम कह सकते हैं:–
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंगूठों के बॉस समान,
प्रभु जी, घर, बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा,
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी……….
प्रभु जी तुम हम हम,
जैसे सोने में सुहागा,
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी……….
प्रभु जी, दीपक हम बात,
जाकी ज्योति जले दिन रात,
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी….
श्री आयुस्व आरोग्य कल्याणमस्त ——–
जय श्री कृष्ण ———-
– आरएन तिवारी
[ad_2]