Home इंडिया बिहार राजद और चुनावी समस्याएं: यादव समुदाय की भूमिका

राजद और चुनावी समस्याएं: यादव समुदाय की भूमिका

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बिहार में आगामी विधानसभा 2025 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए, यदि यादव समुदाय ने अपनी मांगों में परिवर्तन नहीं किया और अन्य समुदायों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने में असफल रहे, तो राजद को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। राजद के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वह अपने नेतृत्व और संगठन में समावेशिता और विविधता को प्राथमिकता दे, जिससे सभी समुदायों का समर्थन प्राप्त हो सके। यदि पार्टी इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती है, तो 2025 के चुनाव में उसकी सफलता की संभावनाएं अत्यधिक कम हो जाएंगी। परिणामस्वरूप, पार्टी के सपने धूमिल हो सकते हैं और उसका राजनीतिक भविष्य संकट में पड़ सकता है।

फैसल सुल्तान 

राष्ट्रिय जनता दल के लिए यादव समाज की राजनीति एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। उल्लेखनीय है कि यादव समुदाय हर जगह सीटें चाहता है, जिससे राजद के लिए समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। यादव समाज की अधिक सीटों की मांग और इस समुदाय के भीतर के विभाजन ने राजद की राजनीतिक स्थिति को कमजोर किया है। यादव समाज के भीतर विभिन्न उपसमूहों के बीच के विवाद भी पार्टी के लिए चुनौती बने हुए हैं।

सीट वितरण और चुनाव परिणाम

महागठबंधन ने यादव समुदाय को 11 सीटें दीं, जो कि लेख के अनुसार, एक बड़ी संख्या है। इस संदर्भ में, अखिलेश यादव का उदाहरण दिया गया है जिन्होंने अधिक सीटें प्राप्त कीं क्योंकि उन्होंने यादवों को इतनी सीटें नहीं दीं। इस तुलना से यह स्पष्ट होता है कि यादव समुदाय को संतुष्ट करने के लिए अन्य समुदायों की अनदेखी करना राजद के लिए हानिकारक हो सकता है।

बिहार में यादव प्रत्याशी

बिहार के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में यादव प्रत्याशियों को टिकट दिया गया, जैसे कि सीतामढ़ी, वाल्मीकि नगर, मधेपुरा, नलांदा, बेगूसराय, दरभंगा, बांका, सिवान, सारण, पाटलीपुत्र, और जहानाबाद। इन सीटों पर यादव प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे थे। यादव समुदाय की प्रमुखता के कारण, अन्य पिछड़े वर्गों और समुदायों की उपेक्षा हुई, जिससे असंतोष और विरोध पैदा हुआ।

बागी यादव उम्मीदवार

कुछ यादव उम्मीदवार नाराज हो गए और बागी बन गए। इनमें पप्पू यादव (पूर्णिया), गुलाब यादव (झंझारपुर), देवेंद्र यादव (मधुबनी), बिनोद यादव/राजबलभ यादव (नवादा), ददन पहलवान (बक्सर), और शांतनु यादव (मधेपुरा) शामिल थे। इन बागी उम्मीदवारों ने चुनाव हराने में मुख्य भूमिका निभाई। उनके बागी होने से राजद की स्थिति कमजोर हुई और पार्टी को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा।

यादव समाज का विभाजन

यादव समाज के अंदर विभिन्न समूहों (कृष्णौत, मझरौट) के बीच विभाजन की बात भी सामने आ रही है। यह विभाजन राजद के पतन का कारण बन सकता है। यादव समाज के विभिन्न उपसमूहों के बीच के विवाद और प्रतिस्पर्धा ने पार्टी की एकता को प्रभावित किया है।

अन्य समुदायों का समर्थन

लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि यदि यादव समाज तेजस्वी यादव को आगे बढ़ाना चाहता है, तो उसे अन्य समुदायों (दलित, अतिपिछड़ा, गैर यादव पिछड़ा, और मुस्लिम) को मंच पर अधिक स्थान देना चाहिए। यह आवश्यक है कि राजद यादव समुदाय के बाहर भी समर्थन जुटाए और अन्य पिछड़े वर्गों और समुदायों के नेताओं को भी समुचित स्थान दे।

2025 के चुनाव की चिंता

यदि यादव समुदाय ने अपनी मांगें नहीं छोड़ीं और अन्य समुदायों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया, तो 2025 के चुनावों में राजद और यादव समुदाय को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। राजद को अपने नेतृत्व और संगठन में समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देना होगा ताकि सभी समुदायों का समर्थन प्राप्त हो सके। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो पार्टी के लिए 2025 के चुनाव में सफलता पाना मुश्किल हो सकता है। सारा सपना खत्म हो जाएगा।



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