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पूर्णिया का लाइन बाजार अब फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार का केंद्र बन चुका है। इसके साथ ही, इस बड़े मेडिकल हब का विस्तार हुआ था, लेकिन इलाज की फीस और फर्जी पैथोलॉजी केंद्रों की संख्या भी बढती चली गयी । कुकुरमुत्ते की तरह फैले जांच केंद्रों में से कई रजिस्टर्ड नहीं हैं और नकली रिपोर्टें थमा रहें हैं।
– अंकुश लगाने में प्रशासन से सिविल सर्जन तक नाकाम
– मरीज हो रहे दलालों और नकली पैथोलॉजी का शिकार
पूर्णिया (विशाल/पिंटू/विकास)
गरीब गुरबों के बेहतर और सस्ते इलाज के लिए अपनी पहचान बनाने वाला पूर्णिया का लाइन बाजार कालांतर में जब बड़े मेडिकल हब के रूप में विस्तारित हुआ तो यहां निजी नर्सिंग होम और डॉक्टरों की क्लीनिकों की संख्या तो अप्रत्याशित रूप से बढ़े ही , अच्छे अच्छे फिजिशियन से लेकर अच्छे अच्छे सर्जनों की भी गिनती बढ़ गई और उसके साथ साथ ही बढ़ गई इलाज की फीस भी। तीन सौ से 1 हजार रूपए फीस वाले डॉक्टरों की बेतहाशा वृद्धि हुई और उसके साथ साथ ही स्वाभाविक रूप से बढ़ गए पैथोलॉजी ,एडवांस डायग्नोस्टिक,अल्ट्रासाउंड , एक्सरे एमआरआई ,सिटी स्कैन,वगैरह के जांच सेंटर।
चर्चा है कि लाइन बाजार के चप्पे चप्पे से लेकर गली कूचों तक में ये जांच सेंटर कुकुरमुत्ते की तरह फैल गए हैं। हरेक में रोजाना सौ से चार पांच सौ तक की संख्या में मरीज की जांच होती है लेकिन यह बात किसी को पता नहीं है कि लाइन बाजार में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए जांच घरों में से कितने रजिस्टर्ड और लाइसेंसी हैं जिनमें जांच की रिपोर्ट समर्पित करने वाले डिग्रीधारी डॉक्टर भी हैं और कितने विशुद्ध फर्जी नकली और कंपाउंडरों के द्वारा ही संचालित हैं।
इसे लाइन बाजार की किस्मत कही जाय कि महज एक पूर्णिया सदर अस्पताल के भी लाइन बाजार में ही स्थापित रहने के कारण लाइन बाजार की मेडिकल हब की पहचान बनी थी और अब उसी सदर अस्पताल के मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल जीएमसीएच में तब्दील हो जाने के कारण जो लाइन बाजार का रूतबा बढ़ा तो स्वाभाविक रूप से मरीजों की संख्या में भी इजाफा हुआ। एक अंदाजा के मुताबिक यह लाइन बाजार सभी तरह की सरकारी प्राइवेट चिकित्सा व्यवस्था को मिलाकर लगभग दस से बारह हजार मरीजों को प्रत्येक दिन झेल रहा है।
लेकिन , इनमें से आधे के साथ फर्जी नकली जांच सेंटर द्वारा खुली ठगी की जा रही है।
मरीजों के असली धन का दोहन करते हो उन्हें उल्टे सीधे नकली जांच रिपोर्ट सौंपे जा रहे हैं।
उन तमाम जांच रिपोर्टों में दी जाने वाली गलत रिपोर्टों के कारण मरीज काल के गाल में समा रहे हैं और इसके ज्यादा शिकार जच्चा और बच्चा दोनो ही हो रहे हैं।
जिस कारण हरेक दिन किसी न किसी नर्सिंग होम में तोड़ फोड़ की घटनाएं हो रही है और स्टाफों से लेकर डॉक्टरों तक को मरीजों के परिजनों के द्वारा खदेड़े जा रहे हैं और ताज्जुब की बात है कि लाइन बाजार में डॉक्टरों और नर्सिंग होम के लिए दलाली करने वाले बहुसंख्यक दलालों की जमात बबाल को नियंत्रित कर तुरत माहौल को सामान्य बना देते हैं वह भी ऐसा कि मानों वहां पर कोई घटना घटी ही नहीं हो।
पूर्णिया का लाइन बाजार अब फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार का केंद्र बन चुका है। इसके बड़े मेडिकल हब के रूप में विस्तार के साथ ही इलाज की फीस और फर्जी पैथोलॉजी केंद्रों की संख्या भी बढ़ गई है। कुकुरमुत्ते की तरह फैले जांच केंद्रों में से कई रजिस्टर्ड नहीं हैं और नकली रिपोर्टें थमा रहें pic.twitter.com/aTQbsCezaj
— Faisal Sultan (@faisalsultan) May 29, 2024
इस खबर का सीधा सीधी तात्पर्य यही है कि एक नामी गिरामी मेडिकल हब लाइन बाजार को अपनी गिरफ्त में लेकर लूट खसोट और फर्जी इलाज के अड्डे के रूप में विस्तारित कर पूरी तरह से बदनाम कर देने वाले नकली फर्जी नर्सिंग होमों और नकली पैथोलॉजी एडवांस डायग्नोस्टिक अल्ट्रासाउंड एक्सरे एमआरआई जांच घरों को लूट की जो खुली छूट मिली हुई है उस पर कार्रवाई करने या लगाम लगाने का साहस न तो जिला प्रशासन में दीख रहा है और न संबंधित विभाग के मुखिया सिविल सर्जन पूर्णिया में वह साहस नजर आ रहा है।
अभी अभी दो तीन दिन पहले ही पत्रकारों की एक टीम ने सिविल सर्जन पूर्णिया से इस मद में सवाल किया था तो सिविल सर्जन ने भी साफ लहजे में जवाब दिया था कि यह समस्या एक अकेले उनके वश की बात नहीं है।इसमें सुनियोजित तरीके से जिला प्रशासन और बिहार का उच्च स्तरीय स्वास्थ विभाग जब तक उनकी यानि सिविल सर्जन की पीठ पर सवार नहीं होगा तब तक पूर्णिया के लाइन बाजार मेडिकल हब में चिकित्सा और जांच के नाम पर होने वाला फर्जीवाड़ा को रोका नहीं जा सकता है
क्योंकि यहां से आज जिस पैथोलॉजी लैब को सील कर उसके संचालक को कैद कराया जाता है वहां पर दूसरे दिन से ही नए पैथोलॉजी सेंटर का बोर्ड लगा कर फिर वही फर्जीबाड़ा प्रारंभ कर दिया जाता है और तुर्रा यह कि ऐसी बातों की सूचना देने से भी लोग कतराते हैं क्योंकि , सभी के मुंह पर कड़े कड़े नोटों की पट्टियां लगा दिए जाते हैं।
जिसके परिणामस्वरूप सीमांचल से लेकर कोशी क्षेत्र तक के मरीजों को ही नहीं वल्कि निकटवर्ती पश्चिम बंगाल से लेकर बिल्कुल सटे हुए पड़ोसी देश नेपाल के मरीजों तक को चिकित्सा क्षेत्र का सारा महकमा हरेक दिन लूट रहा है।
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