Home इंडिया बिहार पूर्णिया में जदयू की हार के बाद आंतरिक कलह बढ़ी, मेयर के पति जितेन्द्र यादव पार्टी से निष्कासित

पूर्णिया में जदयू की हार के बाद आंतरिक कलह बढ़ी, मेयर के पति जितेन्द्र यादव पार्टी से निष्कासित

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सीमांचल क्षेत्र की तीन संसदीय सीटों पर एनडीए के जदयू उम्मीदवारों की हार के बाद जदयू और भाजपा के बीच मतभेद उभर कर सामने आए हैं। पूर्णिया में जदयू की हार के चलते पार्टी में आंतरिक कलह बढ़ गई है। पूर्णिया नगर निगम की मेयर के पति और जदयू के प्रदेश महासचिव जितेन्द्र यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में जदयू से निष्कासित कर दिया गया है। यादव ने इस कार्रवाई के पीछे पूर्व जदयू सांसद संतोष कुशवाहा की साजिश बताया है और गंभीर आरोप लगाए हैं। इसके परिणामस्वरूप, पूर्णिया जदयू में फूट पड़ने की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

-सीमांचल की तीन संसदीय क्षेत्रों से एनडीए के जदयू प्रत्याशी रहे तीनों सांसदों की पराजय को लेकर जदयू भाजपा की सिंगें फंसी

-पूर्णिया में जदयू की हार को लेकर जदयू में भी आपसी अंतर्कलह गहराने से पूर्णिया जदयू दो फाड़ में विभक्त होने के कगार पर

सीमांचल (विशाल/पिंटू/विकास)

पूर्णिया नगर निगम की मेयर के पति और बिहार प्रदेश जदयू के प्रदेश महासचिव जितेन्द्र यादव को जदयू के प्रदेश नेतृत्व ने पूर्णिया में लोक सभा आम चुनाव 2024 के दौरान पार्टी विरोधी कार्यों में संलिप्त रहने के आरोप में पार्टी की सभी पदों से पद मुक्त करते हुए और उनकी पार्टी की प्रारंभिक सदस्यता को रद्द करते हुए जदयू से निष्कासित कर दिया है।

जितेन्द्र यादव ने पार्टी की इस सख्त कार्रवाई को पूर्णिया के पूर्व जदयू सांसद संतोष कुशवाहा की साजिश बताते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा पर कई गंभीर आरोप लगाया है। और इसी के साथ पूर्णिया जदयू अंतर्कलह का शिकार हो कर दो फाड़ में बंटना शुरू हो गया है।

जबकि दूसरी ओर , इस बार के बीते लोक सभा चुनाव में अपनी पराजय का ठिकड़ा भाजपा के माथे पर फोड़ते हुए पूर्णिया के पूर्व जदयू सांसद संतोष कुशवाहा ने पूर्णिया भाजपा पर साज़िशतन गठबंधन धर्म नहीं निभाने का आरोप लगाया।

सीमांचल के चारो संसदीय क्षेत्रों में से एक अररिया की संसदीय क्षेत्र को छोड़कर शेष तीनों संसदीय क्षेत्रों पूर्णिया , किशनगंज और कटिहार में एनडीए के जदयू प्रत्याशियों की हुई पराजय को लेकर तीनों संसदीय क्षेत्रों में जदयू और भाजपा के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। 

इन तीनों संसदीय क्षेत्रों में इस बार के बीते लोक सभा चुनाव में जदयू के उम्मीदवारों की हार के लिए सीधे उम्मीदवारों के द्वारा भी  तीनों जगह के भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। 

आरोप लगाया जा रहा है कि चुनाव के दौरान तीनों संसदीय क्षेत्रों में भाजपा ने एनडीए के जदयू भाजपा वाले गठबंधन धर्म को निष्ठा पूर्वक नहीं निभाया। 

हालांकि, उन आरोपों के जबाब में भाजपा द्वारा जदयू के तीनों उम्मीदवारों की पराजय का जिम्मेवार जदयू के उम्मीदवारों को ही बताया गया है।

कहा गया है कि जदयू के उन तीनों उम्मीदवारों पर पिछले दस वर्षों की राजपाट का नशा इस कदर हॉबी था कि उस घमंड में चुनाव की शुरूआत से लेकर चुनाव के संपन्न होने तक में जदयू के उन तीनों प्रत्याशियों ने एक बार भी भाजपाइयों की खोज खबर नहीं ली और न भाजपा के साथ किसी तरह की चुनावी मीटिंग की और न भाजपाइयों से कोई सलाह मशविरा किया ।

भाजपा नेताओं के अनुसार , जदयू के प्रत्याशियों ने सत्ता के नशे में अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में खुले तौर पर भाजपा को अछूत बना रखा था। 

सीमांचल के पूर्णिया , किशनगंज और कटिहार में जदयू और भाजपा के बीच चल रहे इस तरह के आरोप प्रत्यारोप के क्रम में ही किशनगंज के जदयू प्रत्याशी रहे मास्टर मुजाहिद आलम ने किशनगंज में अपनी पराजय की समीक्षा करते हुए अपनी पराजय का जिम्मेवार सीधे भाजपा को ही ठहराया है। बीते लोक सभा चुनाव में अपनी शिकस्ती का जिम्मेवार भाजपा को ठहराते हुए जदयू के किशनगंज प्रत्याशी रहे मास्टर मुजाहिद आलम ने सीधा आरोप लगाया है कि किशनगंज के भाजपाइयों ने खुल्लमखुल्ला कांग्रेस की झोली में वोट दिलवाया और एनडीए के साथ गठबंधन धर्म को नहीं निभाया। 

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार , इस कारण किशनगंज में भी भाजपा और जदयू के बीच उठापटक वाली स्थिति कायम हो गई है।

कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सीमांचल के तीन संसदीय क्षेत्रों से जदयू के प्रत्याशी रूपी तीनों पूर्व सांसदों की हुई शिकस्ती के कारण सीमांचल की जदयू और भाजपा एक दूसरे से पूरी तरह से उलझ गई है और आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला इस कदर बढ़ गया है कि उसके आधार पर जदयू ने अपने आरोपी नेताओं को जदयू से निष्कासित करने की कार्रवाई तक शुरू कर दी है। 

 नई खबर के मुताबिक , पूर्णिया में भाजपा और जदयू में जारी आरोप प्रत्यारोप की दौर के बीच ही जदयू में भारी आपसी अंतर्कलह उत्पन्न हो गए हैं।

बीते लोक सभा चुनाव में जदयू के प्रत्याशी रहे पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा और जदयू के प्रदेश महासचिव जितेंद्र यादव के बीच शुरू हुए राजनीतिक घमासान के कारण पूर्णिया में जदयू दो फाड़ में विभक्त होने के कगार पर पहुंच गई है। 

प्राप्त खबरों के अनुसार , जदयू के प्रदेश नेतृत्व ने बीते लोक सभा चुनाव के दौरान दल विरोधी गतिविधियों को लेकर जितेंद्र यादव को जदयू से निष्कासित कर दिया है और जितेंद्र यादव की प्राथमिक सदस्यता को भी रद्द कर दिया है।

जिस पर जबाबी हमला करते हुए जितेंद्र यादव ने पहले तो प्रदेश जदयू नेतृत्व को ही निशाने पर लिया और कहा कि उन पर लगाए गए किसी भी तरह के आरोपों का ज़बाब देने के लिए पहले उन्हें बुलाया जाना चाहिए था,स्पष्टीकरण मांगा जाना चाहिए था न कि सीधे निष्कासन की कार्रवाई किया जाना था।

 

अपनी बातों को रखते हुए जितेंद्र यादव ने पूर्णिया के पूर्व जदयू सांसद संतोष कुशवाहा को निशाने पर लिया है और कहा है कि उनके खिलाफ जदयू के प्रदेश नेतृत्व को भड़का कर इस तरह की कार्रवाई जदयू के पूर्व पूर्णिया सांसद संतोष कुशवाहा द्वारा ही सुनियोजित ढंग से कराई गई है।

जदयू से निष्कासन का दंश झेल रहे पूर्णिया के चर्चित जदयू नेता जितेंद्र यादव ने कहा कि पूर्णिया में लगातार दस वर्षों तक जदयू सांसद के रूप में स्थापित रहने वाले संतोष कुशवाहा सिर्फ सत्तासुख को भोगने में ही लगे रहे थे और अपने आवास से बाहर निकल कर कभी न तो जनता की सुधि ले पाये और न कभी दलीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से रूबरू होकर चुनाव संबंधी विचार विमर्श की जरूरतों को महसूस कर पाए थे।

जितेंद्र यादव ने कहा कि जदयू सांसद के रूप में सांसद संतोष कुशवाहा ने सिर्फ एक सूत्री काम ठीकेदारी मात्र का किया और हमेशा ठीकेदारों से ही घिरे रहे थे।

और अब उल्टा उनके जैसे दल के प्रति समर्पित नेता की शिकायतें कर दल से निष्कासित करा दिए हैं। 

बहरहाल , यह विदित हो कि इस बार के लोक सभा आम चुनाव को लेकर बिहार के इस सबसे बड़े मुस्लिम बहुल सीमांचल के किशनगंज और कटिहार संसदीय क्षेत्रों की जनता मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली नौटंकीबाज पार्टी कांग्रेस की मुरीद बनी तो दूसरे नौटंकीबाज मुस्लिम हितैषी नेता पप्पू यादव की मुरीद बनी पूर्णिया संसदीय क्षेत्र की जनता।

जिन्होंने पिछले दस साल का सत्ता सुख भोगने वाले जदयू और नीतीश कुमार के सांसदों और उनके उम्मीदवार को इस बार सीमांचल की चुनावी राजनीति से रूखसत करा दिया।

मजेदार बात तो यह रही कि इसी मुस्लिम बहुल सीमांचल की जनता के बीच अपनी लोकप्रियता के पांव जमाने के लिए जिस एमआईएम के राष्ट्रीय सुप्रीमों असदुद्दीन ओवैसी ने संसद के भरे सदन में मोदी की एनआरसी सीएए का बिल फाड़ा उसका भी कोई असर इस सीमांचल में मुस्लिम समाज पर संसदीय चुनाव में कभी नहीं दिखा।

तीन टर्म की कोशिश के बाबजूद भी एमआईएम के गुलाबी उर्दू बोलने वाले सटीक भाषणबाज़ एमआईएम नेता अख्तरूल ईमान नहीं जीत पाया और उस पर तुर्रा यह कि वह किसी चुनाव में तीसरे स्थान से दूसरे स्थान पर भी नहीं आ पाया।

अजीबोगरीब बात यह भी है कि इस क्षेत्र के मुस्लिम समाज में राजद कांग्रेस के प्रति जो प्रेम संजो कर रखा है वह भी कोई लाभदायक नही लेकिन कांग्रेस जेहन से उतर नहीं पा रही है।



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