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बोल विश्वामित्र यों,
राम-लखन दीजे मुझे, हे दशरथ महाराज।
हे दशरथ महाराज, यज्ञ तो पूरी तरह से
पहरे पर जब दोनों भाई खड़े रहेंगे।
कह ‘प्रशांत’ बोलें ये अबाला
अति सूक्ष्म और जटिल कर्णाला..81..
–
मुनी ने तस्वीर, राजा मान बात
समान भाई समान, वन में साथ।
वन में साथ, तड़का स्वर्गलोक पठाई
मुनि ने विज्ञानं में परीक्षण किया है।
कह ‘प्रशांत’ मारीच सहायक
राम-बाण ने समुद्र पार..82..
–
फिर सुबाहु, तकरार
राम-लखन ने कर दिया, सेना संग संहार।
सेना संगर संहार, स्तुति देवन उच्चारी
जय-जय श्री रघुवीर संतजन की हितकारी।
‘प्रशांत’ फिर कहक बाजी की बात
मुनि के साथ असामान्य रूप से मनभावन भाई।.83।।
–
कार्यालय में काम करते हैं, बाहर और
एक शिला से हो, नारी का आभास।
नारी का आभास, मुनी भेद भेद
है गौतम अर्धांग, सबने ठुकराया।
कह ‘प्रशांत’ इस तपस्विनी को शश नवाओ
और कहो हे मातु अहल्या अब उठो।.84..
–
रात को वाणी राम की,
और शीला से बन, जीवन-जाग्रत नार।
जीवन-जाग्रत नार, धन्य-धन्य रघुराय
मेरा सौभाग्य है, आज शरणागति पा।
कह ‘प्रशांत’ था शाप वरदान बन गया
कोटि जन्म तक रामचरण में स्थान मिला।.85..
–
देवनदी आगे, आगे घटी कथा महान
दर्शन-पूजन कर, सबने गंगा स्नान।
फिर आगे सब-आगे
पहुंचे जनक पुरी में, भाग्य के जागे।
कह ‘प्रशांत’ नगर-महल सुखी रहने वाले
आमने-सामने, सभी ने डेरे..86..
–
जनकराज ने सुना,
राम-लखन को गलत, हर्षित।
हर्षित
उन आंखों में
कह ‘प्रशांत’ फिर भी खेल में बरकरार
मुनि के प्रचार में घर घर।।87।।
–
लक्ष्मण की इच्छा, जनकपुर धाम
गुरु से आज्ञा पत्र, साथ में श्रीराम।
साथ श्रीराम, नगर सब धा
अपने सपें सपें.
कह ‘प्रशांत’ कौशल के सुत श्रीरामा
लखन, दूजे, मात सुमित्रा नाम।।88।।
–
दशरथ की संतानें, ये अयुरुओ
रक्षा द्वारा यज्ञ की, असुर समाज।
मिल असुर सोसाइटी, सिंह समछटा मनोहर
हथकड़ चाल, कमल से नाना सुंदर।
कह ‘प्रशांत’ लख राम दूर भर आवास अखियां
बनी सिलिया की शादी, बो सखियां..89..
–
एक सखी बोय सकुच, शंकर धनु क्रूर
कैसे टूटेंगे, ये इतने किशोर होंगे।
ये किशोर किशोरियों की तरह
धिर धर के मन में, अति शुभ वाणी।
कह ‘प्रशांत’ ब्रह्म ने बनाया है
यह सोच-विचार रोधी रघुराई।.90..
– विजय कुमार
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