
[ad_1]
सभी देव हर्षित, बाजे बज
स्वर्ग की सृष्टि, आनंदित संसार।
आनंदित संसार, अश्वगज गोधन-मणिय्या
सोने-चांदी के लड्डू की लदी।
कह ‘प्रशांत’ दीना ढ अकूत हिमवान
चरण छिपाने के लिए हे शकरा ..61..
–
मैना की आँख, गंगा-जमुना नीर
चरणकमल शंकर गहे, आहार में अधीर।
पौष्टिक आहार, उमा प्राणों से सुरक्षा
सब पाप क्षमा हे गंगाधारी।
कहो ‘प्रशांत’ भोले ने शरीर को को
️धीरे️धीरे️धीरे️धीरे️️️️️️️️
–
मैना बो उमा, सुन मेरी बात
नारी की सेवा धर्म है, नारी की जात।
ती नारी की जात,
प्रिय नारी जीवन में देव न द दूजा।
कह ‘प्रशांत’ इस तरह से
सजी पालकी के लिए अनिश्चित।..63।।
–
एलर्जी में,
– बचाव से बचाव।
बढ़ी धाम कैलास, देवता हर्षित होकर
मंगल ग्रह मंगल ग्रह पर।
अपने घर में
नित्य नया उत्साह था जीवन में..64..
–
पार्वती ने यों, इक दिन मन की बात
रामकथा जो है मधु, सुनाओ तात।
सुनाओ तात, चरितो समझाओ
जन्म बाल लीला-विवाह सब कुछ बातलाओ।
कह रहे हैं ‘प्रशिष्ट’ रोबोट फिर से खुला
प्रजा सहित निज धाम फिर से राघव राजा।।65।।
–
शिवजी को अच्छा, यह श्रेष्ठ विचार
पुलकित सब, सब, मनभावन।
स्थायी सूचना, सूचना
और राम के बाल रूप को शश शश।
कह ‘प्रशांत’ जो कथा राम की-सुनेगा
कामधेनु-सेवा का गायन।।66।।
–
अनंत श्रीरामजी, कथा कीर्ति-गुणगान
संशय को पूरा करने के लिए, धरो चरणों में ध्यान दें।
धरो चरण में ध्यान दें, गुण गुण गाते
ज्ञानी ध्यान दें गोलाबारी गति।
कह ‘प्रशांत’ वे अवधपति दशरथ के नंदन
हित हितकारी कीजे वंदन..67..
–
अधर्म
तब-तब कृपानिधान प्रभु, ज़बरदस्ती।
भक्त को अभयते
और भार को घटाना, धरा का भार घटाना।
कह रहे हैं ‘प्रशांत’ श्रीरामचंद्र ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया
असुरजनों का नाश, संतों का शोधन।.68..
–
जाने कल्प कल्प, जाने नाम
अलग-अलग अलग हैं पर, एक श्रीराम को अलग करें।
एक श्रीराम दूर, सभी की कथा सुनाना
कोई बात नहीं है।
कहो ‘प्रशांत’ यह सब सुना पार्वती चक्राई
शंकरजी ने आगे कुछ कथाएं।.69।।
–
एक बार नारद मुनी, को जागा अभिमान
उस कृपानिधान ने, तो एक निदान।
एक निदान, नगर इक नया बसाया
और स्वयंवर एक विशाल विशाल विश्व।
कह ‘प्रशांत’ नारद का बंदर रूपी
छोड़ दिया फिर उनको सबके साथ बिठाकर..70 ..
– विजय कुमार
[ad_2]